google.com, pub-5145004260852618, DIRECT, f08c47fec0942fa0 संस्कृत साहित्य पर विशाखदत्त का प्रभाव
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संस्कृत साहित्य पर विशाखदत्त का प्रभाव

संस्कृत साहित्य पर विशाखदत्त का प्रभाव


परिचय:
विशाखदत्त संस्कृत के एक प्रसिद्ध नाटककार थे। उनका साहित्यिक योगदान मुख्यतः ऐतिहासिक नाटक लेखन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण माना जाता है। उनके जीवन के बारे में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है, परंतु यह माना जाता है कि वे गुप्तकाल (लगभग 4वीं–5वीं शताब्दी ई.) के आस-पास सक्रिय थे। वे संभवतः एक दरबारी कवि या विद्वान थे। उनकी मुख्य कृति मुद्राराक्षस और देवीचन्द्रगुप्तम् है।

1. मुद्राराक्षस (Mudrārākṣasa)

i) प्रकार: ऐतिहासिक नाटक (राजनैतिक नाटक)

ii) कथावस्तु: इस नाटक की कथा चाणक्य, चंद्रगुप्त मौर्य और राक्षस (नंदों के प्रधानमंत्री) के राजनीतिक संघर्ष पर आधारित है।

iii) मुख्य पात्र: चाणक्य, चंद्रगुप्त, राक्षस, चंद्रदत्त, भगुरायण आदि।

iv) विषयवस्तु: चाणक्य किस प्रकार अपनी राजनीति और चतुराई से राक्षस को अपने पक्ष में करके मौर्य साम्राज्य को स्थायित्व प्रदान करता है, यही इस नाटक का केंद्रीय बिंदु है।

v) विशेषता:

  • इसमें शृंगार या वीर रस से अधिक राजनीतिक यथार्थ और चतुरनीति का वर्णन है।
  • नाटक में कोई स्त्री पात्र नहीं है, जो इसे अन्य संस्कृत नाटकों से अलग बनाता है।
  • नाटक में कूटनीति, राष्ट्रनीति और बुद्धि कौशल का उत्कृष्ट चित्रण मिलता है।

नाटक की पृष्ठभूमि नंद वंश के पतन और मौर्य वंश की स्थापना से जुड़ी है। चाणक्य, मगध के नंद वंश को समाप्त करके चंद्रगुप्त को गद्दी पर बिठा चुके हैं। किंतु नंदों के प्रधानमंत्री राक्षस अब भी चंद्रगुप्त का विरोध कर रहे हैं और मौर्य साम्राज्य के लिए खतरा बने हुए हैं।

मुख्य कथा-

क. चाणक्य की योजना- चाणक्य राक्षस को चंद्रगुप्त के पक्ष में लाने की रणनीति बनाते हैं। वे जानते हैं कि राक्षस एक बुद्धिमान और राष्ट्रभक्त व्यक्ति है, इसलिए उसे छल और नीति से अपने पक्ष में करना ही समाधान है।

ख. षड्यंत्र और राजनीति- चाणक्य कई योजनाएँ बनाते हैं — जैसे राक्षस के मित्र चंद्रदत्त को फंसाना, उसके विश्वासपात्रों को तोड़ना, तथा एक मुद्रा (अंगूठी) के माध्यम से भ्रम पैदा करना। इन्हीं योजनाओं से नाटक का नाम “मुद्राराक्षस” पड़ा है।

ग. राक्षस का मन परिवर्तन- राक्षस को जब यह पता चलता है कि चाणक्य और चंद्रगुप्त की नीति राष्ट्रहित में है और वे न्यायप्रिय शासन चाहते हैं, तो वह अपने स्वाभिमान को त्यागकर मौर्य साम्राज्य की सेवा स्वीकार कर लेता है।

नाटक का अंत इस संदेश के साथ होता है कि नीति, बुद्धि और राष्ट्रहित यदि सही दिशा में प्रयोग किए जाएँ, तो विरोधी भी मित्र बन सकते हैं। चाणक्य की कूटनीति और चंद्रगुप्त की नेतृत्व क्षमता के कारण मौर्य साम्राज्य एकजुट और स्थिर हो जाता है।

2. देवीचन्द्रगुप्तम् (Devī-Chandraguptam):

यह विशाखदत्त की दूसरी रचना मानी जाती है, किंतु यह पूर्ण रूप से उपलब्ध नहीं है। इसके केवल कुछ अंश ही प्राप्त हुए हैं।

विशाखदत्त के लेखन की विशेषताएँ-

  1. ऐतिहासिक दृष्टिकोण- विशाखदत्त ने ऐतिहासिक घटनाओं को आधार बनाकर साहित्य सृजन किया।
  2. राजनीतिक कुशलता का वर्णन- चाणक्य की राजनीतिक चतुराई को जिस प्रकार उन्होंने प्रस्तुत किया है, वह उन्हें महान नाटककार बनाता है।
  3. नाटकीय संरचना- कथानक में गति, रहस्य और उत्सुकता बनी रहती है, जो दर्शकों/पाठकों को बांधे रखती है।
  4. भाषा और शैली- विशाखदत्त की भाषा प्रौढ़, ओजपूर्ण तथा सारगर्भित है।

संस्कृत साहित्य में विशाखदत्त की महानता और प्रभाव: 

१. राजनीतिक दृष्टिकोण का साहित्य में प्रवेश : विशाखदत्त ने संस्कृत नाट्य साहित्य में राजनीति और कूटनीति जैसे गूढ़ विषयों को अत्यंत प्रभावशाली रूप से प्रस्तुत किया। उन्होंने नीतिशास्त्र और ऐतिहासिक घटनाओं को साहित्यिक शैली में ढाला।

२. ऐतिहासिक नाटक का विकास : विशाखदत्त ने साहित्य में ऐतिहासिक पात्रों और घटनाओं का चित्रण कर संस्कृत साहित्य में ऐतिहासिक नाटकों की परंपरा को सुदृढ़ किया।

३. चरित्र चित्रण की गहराई : चाणक्य, राक्षस, चंद्रगुप्त आदि पात्रों के माध्यम से उन्होंने मानवीय प्रवृत्तियों, कूटनीति, त्याग और राष्ट्रभक्ति का जीवंत चित्र प्रस्तुत किया है।

४. कालिदास से भिन्न शैली : जहाँ कालिदास की रचनाएँ सौंदर्य, प्रेम और प्रकृति पर आधारित हैं, वहीं विशाखदत्त की कृतियाँ यथार्थवाद, राष्ट्रनीति और चरित्रबल की प्रस्तुति करती हैं।

५. संवाद-शैली में बल : विशाखदत्त की भाषा ओजपूर्ण, स्पष्ट और प्रभावशाली है। उनके संवादों में तर्क, नीति और राष्ट्रधर्म का समन्वय मिलता है।

    विशाखदत्त का संस्कृत साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान है। उन्होंने साहित्य को केवल मनोरंजन का साधन न मानकर उसे राष्ट्रहित और राजनीतिक विचारधारा का माध्यम बनाया। उनकी रचनाएँ आज भी राजनीतिक बुद्धिमत्ता और राष्ट्रीय एकता की प्रेरणा देती हैं। उनके द्वारा स्थापित यथार्थवादी परंपरा ने संस्कृत नाटक के स्वरूप को नई दिशा प्रदान की।

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