
प्रारम्भिक काल एवं आधुनिक काल में संस्कृत की स्थिति, स्वरूप एवं स्तर में अंतर
संस्कृत भाषा साहित्य और इतिहास ...प्रारंभिक (वैदिक) संस्कृत धार्मिक एवं मौखिक परम्परा पर आधारित थी, जिसमें कई जटिल लकार और ध्वनियाँ थीं। इसके विपरीत, आधुनिक (शास्त्रीय) संस्कृत का व्याकरण पाणिनी द्वारा मानकीकृत हुआ, जिससे इसकी संरचना व्यवस्थित हुई और यह देवनागरी लिपि में स्थिरता पाकर साहित्यिक और विद्वत्तापूर्ण भाषा बन गई। आधुनिक संस्कृत में वैदिक संस्कृत की कुछ ध्वनियाँ (जैसे फ़) और लकार लुप्त हो गए हैं, और साहित्य का रूप धार्मिक के साथ-साथ धर्म-निरपेक्ष भी हो गया है।
प्रारम्भिक काल (वैदिक संस्कृत) की स्थिति, स्वरूप एवं स्तर-
स्थिति:
यह एक धार्मिक और मौखिक भाषा थी।
स्वरूप:
- इसमें वैदिक संस्कृत की कई जटिल ध्वनियाँ और प्रयोग थे, जो बाद में लुप्त हो गए।
- वैदिक संस्कृत में क्रियारूप और धातुरूपों की संख्या अधिक थी, और इसमें 11 लकार प्रयोग होते थे।
- इसमें ऋ और लृ के दीर्घ रूप, ह और ळ का संयोग, तथा चंद्रबिंदु और स्वर का संयोग जैसी विशेषताएँ थीं।
स्तर:
यह ऋग्वेद जैसे धर्म-ग्रंथों की भाषा थी, जो ज्ञान और धार्मिकता पर केंद्रित थी।
आधुनिक काल (शास्त्रीय संस्कृत) की स्थिति, स्वरूप एवं स्तर-
स्थिति:
यह एक व्यवस्थित, मानकीकृत और विद्वत्तापूर्ण साहित्यिक भाषा है।
स्वरूप:
- पाणिनी ने इसका व्याकरणिक संस्कार किया, जिससे यह अधिक व्यवस्थित हो गई।
- इसमें वैदिक संस्कृत की तुलना में कम ध्वनियाँ और लकार हैं; वैदिक संस्कृत के कई प्रयोग, जैसे कि 11 लकार, आधुनिक संस्कृत में नहीं मिलते।
- यह मुख्य रूप से देवनागरी लिपि में लिखी जाती है, जिसमें हर चिह्न के लिए एक ध्वनि होती है।
स्तर:
- यह रामायण, महाभारत जैसे धार्मिक और धर्म-निरपेक्ष साहित्य का आधार बनी।
- इसका ज्ञान अन्य भारतीय भाषाओं और भाषा निर्माण के लिए आधार प्रदान करता है।
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