
प्रारम्भिक काल में संस्कृत धार्मिक, साहित्यिक और विद्वत्तापूर्ण भाषा थी, जिसकी शुरुआत वैदिक काल में हुई और पाणिनि के व्याकरण के बाद शास्त्रीय रूप धारण किया. आधुनिक काल में भी यह विद्वानों, धार्मिक अनुष्ठानों और अकादमिक अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण बनी हुई है, साथ ही आधुनिक भारतीय भाषाओं पर इसका गहरा प्रभाव है. हालाँकि, आम बोलचाल में इसका प्रयोग कम हो गया है, पर साहित्य, समाचार पत्रों, और धार्मिक ग्रंथों में इसका प्रयोग जारी है, और यह एक सांस्कृतिक धरोहर के रूप में महत्वपूर्ण है.
प्रारम्भिक काल में संस्कृत की स्थिति:
(क) भाषा का स्थान और उपयोग:
i) संस्कृत एक लोकप्रचलित भाषा थी और संवाद, वाणिज्य, धर्म, राजनीति एवं शिक्षा का प्रमुख माध्यम थी।
ii) वेद, उपनिषद, महाकाव्य (रामायण, महाभारत), पुराण, तथा दर्शनों की रचना संस्कृत में हुई।
(ख) साहित्यिक उत्कर्ष:
महर्षि वाल्मीकि, व्यास, कालिदास, भास, भारवि, माघ आदि जैसे महान साहित्यकारों ने इस काल में संस्कृत को साहित्य की चरम ऊँचाइयों तक पहुँचाया।
(ग) सामाजिक स्थिति:
i) यह भाषा समाज के उच्च, मध्य और कुछ हद तक निम्न वर्ग तक भी पहुँची हुई थी।
ii) राजा-महाराजाओं के दरबारों में संस्कृत का वर्चस्व था।
(घ) शिक्षा प्रणाली में भूमिका:
गुरुकुल, आश्रम, विश्वविद्यालय (नालंदा, तक्षशिला आदि) में संस्कृत ही शिक्षण की भाषा थी।
आधुनिक काल में संस्कृत की स्थिति:
(क) भाषा का स्थान और उपयोग:
i) संस्कृत अब मुख्यतः धार्मिक, सांस्कृतिक और शैक्षिक सीमाओं में सिमट गई है।
ii) यह जनसंचार की भाषा नहीं रह गई है; इसका प्रयोग अब सामान्य जीवन में बहुत कम होता है।
(ख) साहित्यिक योगदान:
i) आधुनिक युग में भी कुछ साहित्यकारों ने संस्कृत में लेखन किया है (जैसे: वाणभट्ट पुरस्कार विजेता लेखक) किंतु उत्कर्ष की दृष्टि से यह सीमित है।
ii) काव्य, नाटक, उपन्यास आदि विधाओं में रचनाएँ तो होती हैं, परन्तु उनका प्रभाव सीमित है।
(ग) सामाजिक स्थिति:
i) संस्कृत अब मुख्यतः ब्राह्मणों, विद्वानों एवं अध्येताओं तक सीमित हो गई है।
ii) आम जनता में इसका प्रयोग न्यून है, यद्यपि कुछ गाँव (जैसे कर्नाटक का मत्तुर) में संस्कृत बोली जाती है।
(घ) शिक्षा प्रणाली में भूमिका:
i) अब यह भाषा एक विषय के रूप में विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जाती है, न कि शिक्षण का मुख्य माध्यम है।
ii) संस्कृत माध्यम वाले विद्यालयों की संख्या सीमित है।
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