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पंचतंत्र की पहचान और प्रभाव (Identity and influence of Panchtantra)

पंचतंत्र की पहचान और प्रभाव (Identity and influence of Panchtantra)

 

पञ्चतन्त्र संस्कृत साहित्य का एक प्रसिद्ध और अत्यंत लोकप्रिय नीतिकथा-संग्रह है। यह न केवल भारत में, बल्कि विश्वभर में नैतिक शिक्षाओं और व्यवहारिक ज्ञान के लिए प्रसिद्ध है। इसमें पशु-पक्षियों की कहानियों के माध्यम से मनुष्यों को जीवनोपयोगी नीति, चातुर्य, और व्यवहार-कुशलता की शिक्षा दी गई है।

1. रचनाकार और रचना-काल-

पञ्चतन्त्र के रचयिता पण्डित विष्णुशर्मा माने जाते हैं। यह ग्रंथ लगभग तीसरी शताब्दी ई.पू. में रचित माना जाता है। विष्णुशर्मा ने इसे युवराजों को नीति, राजनीति और व्यवहारिक ज्ञान सिखाने के उद्देश्य से लिखा था।

2. रचना की पृष्ठभूमि-

पञ्चतन्त्र की रचना की कथा अनुसार, राजा अमरसक्ति के तीन पुत्र बुद्धिहीन थे। उन्होंने उन्हें नीति सिखाने के लिए विष्णुशर्मा को नियुक्त किया। उन्होंने छह महीने में इन राजकुमारों को शिक्षित करने के लिए पाँच तंत्रों में यह ग्रंथ रचा, जिसे पञ्च-तन्त्र कहा गया।

3. पञ्चतन्त्र के पाँच तंत्र-

पञ्चतन्त्र पाँच भागों (तंत्रों) में विभाजित है, जो निम्नलिखित हैं:

क. मित्रभेद – मित्रों के बीच मनमुटाव और उसके कारणों को दर्शाता है।

ख. मित्रलाभ (संधि) – सच्चे मित्रों की पहचान और मित्रता के लाभ बताता है।

ग. काकोलूकीयम् – राजनीति, चालाकी और धोखे की कहानियाँ इसमें आती हैं।

घ. लब्धप्रणाश – अर्जित वस्तु के नष्ट हो जाने के कारण और उससे बचाव की शिक्षा।

ङ. अपरीक्षितकारक – बिना सोच-विचार किए किए गए कार्यों के दुष्परिणाम पर आधारित।

4. विशेषताएँ-

i) नीतिकथाओं की शैली: सरल भाषा, संवादात्मक शैली, और रोचक कथानक।

ii) पशु-पक्षियों का प्रयोग: प्रतीक रूप में पात्रों को पशु-पक्षियों के रूप में प्रस्तुत कर मानवीय व्यवहार को चित्रित किया गया है।

iii) शिक्षाप्रद उद्देश्य: प्रत्येक कथा में नैतिक शिक्षा निहित होती है।

iv) लघु और प्रभावशाली कथाएँ: बच्चों से लेकर वृद्धों तक सभी के लिए उपयोगी।

5. वैश्विक प्रभाव-

पञ्चतन्त्र का अनुवाद कई भाषाओं में हुआ है, जैसे:

फारसी में – कलील और दिम्ना

अरबी में – कलिला वा दमना

लैटिन, फ्रेंच, जर्मन, अंग्रेज़ी आदि में भी इसका अनुवाद हुआ है। यह विश्व का सबसे अधिक अनूदित ग्रंथों में से एक है।

संस्कृत साहित्य में पञ्चतन्त्र का प्रभाव-

1. नीतिकथाओं की परंपरा की स्थापना: पञ्चतन्त्र ने नीतिकथाओं को साहित्य का एक स्थायी रूप प्रदान किया। इसकी शैली ने 'हितोपदेश', 'सिंहासन बत्तीसी', 'बेताल पच्चीसी' आदि अन्य नीति-साहित्य को जन्म दिया।

2. साहित्यिक शैली में नवीनता: पञ्चतन्त्र ने कथा कहने की शैली में संवादात्मकता, रूपक, और पशु-पक्षियों के माध्यम से नैतिक शिक्षा देने की पद्धति को लोकप्रिय बनाया। इससे संस्कृत गद्य-साहित्य में विविधता आई।

3. लोकप्रियता और अनुवादों का प्रभाव: यह ग्रंथ अनेक भाषाओं में अनूदित हुआ, जिससे भारतीय संस्कृत साहित्य का विश्वस्तर पर प्रचार हुआ। अरबी में "कलिला व दमना", फारसी, अंग्रेज़ी, लैटिन, फ्रेंच आदि भाषाओं में इसके अनुवाद ने वैश्विक साहित्य को समृद्ध किया।

4. शिक्षा और व्यवहारज्ञान का स्रोत: संस्कृत साहित्य में पञ्चतन्त्र को केवल साहित्यिक कृति नहीं, बल्कि एक नीतिशास्त्र के रूप में भी देखा जाता है। यह शासकों, राजकुमारों और सामान्य जनों को व्यवहारकुशल बनने की शिक्षा देता है।

5. कथा और उपदेश का समन्वय: पञ्चतन्त्र की विशेषता है कि इसमें मनोरंजन के साथ-साथ शिक्षाप्रद उपदेश भी सम्मिलित हैं। यह तत्व संस्कृत साहित्य के अन्य ग्रंथों में भी अपनाया गया।

6. छात्रों की शिक्षा हेतु उपयोगिता: परंपरागत गुरुकुल प्रणाली में छात्रों को पञ्चतन्त्र पढ़ाकर नीति, बुद्धिमत्ता, और नैतिकता की शिक्षा दी जाती थी। इससे यह ग्रंथ शिक्षण के क्षेत्र में भी प्रभावी रहा।

निष्कर्ष:

संस्कृत साहित्य में पञ्चतन्त्र केवल एक कथा-संग्रह नहीं है, बल्कि यह नीति, दर्शन, और व्यावहारिक ज्ञान का अद्वितीय संगम है। इसकी प्रभावशील शैली, सार्वभौमिक सन्देश और व्यापक लोकप्रियता ने न केवल भारतीय साहित्य को समृद्ध किया, बल्कि विश्व साहित्य को भी गहराई से प्रभावित किया।

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