google.com, pub-5145004260852618, DIRECT, f08c47fec0942fa0 पुराणों का संक्षिप्त परिचय (Brief Introduction to Puranas)
INFO Breaking
Live
wb_sunny

Breaking News

पुराणों का संक्षिप्त परिचय (Brief Introduction to Puranas)

पुराणों का संक्षिप्त परिचय (Brief Introduction to Puranas)



संस्कृत साहित्य के इतिहास में पुराणों का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। वेदों और उपनिषदों के पश्चात पुराण साहित्य ने धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन को गहराई से प्रभावित किया। “पुराण” शब्द का अर्थ है – प्राचीन इतिहास या पुरातन ज्ञान।

पुराणों की विशेषताएँ:

क. स्मृति साहित्य का अंग – पुराण वेदों की तरह श्रुति नहीं, बल्कि स्मृति हैं।

ख. 18 महापुराण और 18 उपपुराण – कुल मिलाकर 36 प्रमुख पुराण माने जाते हैं।

ग. पंचलक्षण – प्रत्येक पुराण में ये पाँच बातें होती हैं:

• सर्ग (सृष्टि की उत्पत्ति)

• प्रतिसर्ग (प्रलय और पुनः सृष्टि)

• वंश (देवताओं और ऋषियों के वंश)

• मन्वंतर (मनुओं के युग)

• वंशानुकीर्तन (राजाओं के वंश)


प्रमुख 18 महापुराण:

1. ब्रह्मा पुराण- ब्रह्मा की कथाओं पर आधारित

2. पद्म पुराण- शिव और विष्णु के उपासना पर

3. विष्णु पुराण- विष्णु की महिमा एवं अवतार

4. शिव पुराण- शिव तत्त्व और कथाएँ

5. भागवत पुराण- कृष्ण की लीलाओं का वर्णन

6. नारद पुराण- भक्ति मार्ग और धर्म की बातें

7. मार्कण्डेय पुराण- दुर्गा सप्तशती इसी में है

8. अग्नि पुराण- ज्योतिष, वास्तु, युद्ध आदि का वर्णन

9. भविष्य पुराण- भविष्यवाणी और धर्मशास्त्र

10. ब्रह्मवैवर्त पुराण- राधा-कृष्ण की महिमा

11. लिंग पुराण- शिवलिंग की उत्पत्ति व पूजा

12. वराह पुराण- वराह अवतार की कथा

13. स्कन्द पुराण- सबसे बड़ा पुराण; कार्तिकेय प्रमुख

14. वामन पुराण- वामन अवतार

15. कूर्म पुराण- कूर्म अवतार

16. मत्स्य पुराण- मत्स्य अवतार

17. गरुड पुराण- मृत्यु के बाद के कर्म

18. ब्रह्माण्ड पुराण- ब्रह्माण्ड की रचना और रहस्य


संस्कृत साहित्य के इतिहास में पुराणों का महत्व-

i. धार्मिक महत्व: पुराणों में हिन्दू धर्म के प्रमुख देवताओं (जैसे ब्रह्मा, विष्णु, शिव, देवी आदि) की उत्पत्ति, अवतार, महिमा और उपासना की विधियाँ वर्णित हैं। तीर्थों, व्रतों, पर्वों और धार्मिक कृत्यों का विस्तार से वर्णन मिलता है।

 ii. साहित्यिक महत्व: पुराणों की भाषा सरल संस्कृत में होती है, जिससे आमजन तक धार्मिक और नैतिक शिक्षाएँ पहुँच सकें। कथात्मक शैली के कारण यह रोचक तथा लोकप्रिय हैं। इनमें काव्यात्मकता और कथा-कौशल की सुंदर झलक मिलती है।

iii. दार्शनिक और नैतिक शिक्षा: पुराणों में जीवन-मूल्य, धर्म, कर्म, पुनर्जन्म, मोक्ष आदि विषयों पर गहराई से चर्चा की गई है। मनुष्य को नैतिक जीवन जीने की प्रेरणा दी गई है।

iv. ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व: पुराणों में तत्कालीन समाज, रीति-रिवाज, राजवंशों, नगरों और सभ्यताओं की जानकारी मिलती है। सामाजिक व्यवस्था, वर्णाश्रम धर्म और पारिवारिक मूल्यों का चित्रण मिलता है।

v. ज्ञान-विज्ञान का भंडार: भूगोल, ज्योतिष, खगोल, चिकित्सा, गणित और खनिज-विज्ञान जैसे विषयों पर भी पुराणों में जानकारी मिलती है। विष्णु पुराण, भागवत पुराण में सृष्टि की रचना और ब्रह्मांड की संरचना का वर्णन मिलता है।

निष्कर्ष: संस्कृत साहित्य में पुराण केवल धार्मिक ग्रंथ ही नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, इतिहास, दर्शन और लोकजीवन का दर्पण हैं। इन्होंने भारतीय जनमानस को सदियों तक दिशा दी है और आज भी इनके विचार प्रासंगिक हैं।


उपपुराण :

उपपुराण संस्कृत साहित्य में पुराणों की ही तरह धार्मिक और पौराणिक ग्रंथ हैं, लेकिन ये मुख्य 18 महापुराणों के अतिरिक्त होते हैं, इसलिए इन्हें "उप-पुराण" यानी "अल्प या गौण पुराण" कहा जाता है। उपपुराण वे ग्रंथ हैं जो पुराणों की तरह ही धर्म, नीति, इतिहास, तीर्थ, देवी-देवताओं की कथा आदि विषयों को वर्णन करते हैं, परंतु उन्हें महापुराणों में स्थान नहीं मिला है।

18 उपपुराणों (Upa-Purana) के नाम इस प्रकार हैं:

1. सञ्ज्ञा उपपुराण

2. नरसिंह उपपुराण

3. नन्दी उपपुराण

4. शिवधर्म उपपुराण

5. दुर्वासा उपपुराण

6. कपालिनी उपपुराण

7. कलिका उपपुराण

8. सम्बर उपपुराण

9. उशनस् उपपुराण

10. मनोन्मय उपपुराण

11. विष्णुधर्म उपपुराण

12. नारद उपपुराण

13. त्रिपुरा उपपुराण

14. विष्णुरहस्य उपपुराण

15. सत्यनारायण उपपुराण

16. शक्ति उपपुराण

17. शिवरहस्य उपपुराण

18. गणेश उपपुराण

इन उपपुराणों की संख्या और नाम विभिन्न ग्रंथों और परंपराओं में थोड़ी भिन्न हो सकती है, लेकिन सामान्यतः उपर्युक्त 18 को प्रमुख माना जाता है। ये उपपुराण मुख्य पुराणों की तरह विस्तृत नहीं होते, परंतु धार्मिक, नैतिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं।

उपपुराणों का महत्व:

i) धार्मिक अनुष्ठानों के व्यावहारिक विवरण इन ग्रंथों में मिलता है।

ii) विशेष व्रत, उत्सव, देवी-देवताओं के लोकप्रचलित रूपों की कथा इनसे जानी जाती है।

iii) इन्हें लोकधर्म और भक्ति आंदोलन के विस्तार में भी योगदानकर्ता माना जाता है।

0 Comments: